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नेपियर घास

जानिए गर्मियों में पशुओं के चारे की समस्या खत्म करने वाली नेपियर घास के बारे में

जानिए गर्मियों में पशुओं के चारे की समस्या खत्म करने वाली नेपियर घास के बारे में

भारत एक कृषि प्रधान देश है। क्योंकि, यहां की अधिकांश आबादी खेती किसानी पर निर्भर है। कृषि को अर्थव्यवस्था का मुख्य स्तंभ माना जाता है। भारत में खेती के साथ-साथ पशुपालन भी बड़े पैमाने पर किया जाता है। 

विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में जहां खेती के पश्चात पशुपालन दूसरा सबसे बड़ा व्यवसाय है। किसान गाय-भैंस से लेकर भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में तरह-तरह के पशु पालते हैं। 

दरअसल, महंगाई के साथ-साथ पशुओं का चारा भी फिलहाल काफी महंगा हो गया है। ऐसा माना जाता है, कि चारे के तौर पर पशुओं के लिए हरी घास सबसे अच्छा विकल्प होती है। 

यदि पशुओं को खुराक में हरी घास खिलाई जाए, तो उनका दुग्ध उत्पादन भी बढ़ जाता है। लेकिन, पशुपालकों के सामने समस्या यही है, कि इतनी सारी मात्रा में वे हरी घास का प्रबंध कहां से करें? 

अब गर्मियों की दस्तक शुरू होने वाली है। इस मौसम में पशुपालकों के सामने पशु चारा एक बड़ी समस्या बनी रहती है। अब ऐसे में पशुपालकों की ये चुनौती हाथी घास आसानी से दूर कर सकती है।

नेपियर घास पशुपालकों की समस्या का समाधान है 

किसानों और पशुपालकों की इसी समस्या का हल ये हाथी घास जिसको नेपियर घास (Nepiyar Grass) भी कहा जाता है। यह एक तरह का पशु चारा है। यह तीव्रता से उगने वाली घास है और इसकी ऊंचाई काफी अधिक होती है।

ऊंचाई में ये इंसानों से भी बड़ी होती है। इस वजह से इसको हाथी घास कहा जाता है। पशुओं के लिए यह एक बेहद पौष्टिक चारा है। 

कृषि विशेषज्ञों द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक, सबसे पहली नेपियर हाईब्रिड घास अफ्रीका में तैयार की गई थी। अब इसके बाद ये बाकी देशों में फैली और आज विभिन्न देशों में इसे उगाया जा रहा है।

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नेपियर घास को तेजी से अपना रहे लोग

भारत में यह घास 1912 के तकरीबन पहुंची थी, जब तमिलनाडु के कोयम्बटूर में नेपियर हाइब्रिड घास पैदा हुई। दिल्ली में इसे 1962 में पहली बार तैयार किया गया। इसकी पहली हाइब्रिड किस्म को पूसा जियंत नेपियर नाम दिया गया।

वर्षभर में इस घास को 6 से 8 बार काटा जा सकता है और हरे चारे को अर्जित किया जा सकता है। वहीं, यदि इसकी उपज कम हो तो इसे पुनः खोदकर लगा दिया जाता है। पशु चारे के तौर पर इस घास को काफी तीव्रता से उपयोग किया जा रहा है।

नेपियर घास गर्म मौसम का सबसे उत्तम चारा है 

हाइब्रिड नेपियर घास को गर्म मौसम की फसल कहा जाता है, क्योंकि यह गर्मी में तेजी से बढ़ती है। विशेषकर उस वक्त जब तापमान 31 डिग्री के करीब होता है। 

इस फसल के लिए सबसे उपयुक्त तापमान 31 डिग्री है। परंतु, 15 डिग्री से कम तापमान पर इसकी उपज कम हो सकती है। नेपियर फसल के लिए गर्मियों में धूप और थोड़ी बारिश काफी अच्छी मानी जाती है। 

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नेपियर घास की खेती के लिए मृदा व सिंचाई 

नेपियर घास का उत्पादन हर तरह की मृदा में आसानी से किया जा सकता है। हालांकि, दोमट मृदा इसके लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है। 

खेत की तैयारी के लिए एक क्रॉस जुताई हैरो से और फिर एक क्रॉस जुताई कल्टीवेटर से करनी उचित रहती है। इससे खरपतवार पूर्ण रूप से समाप्त हो जाते हैं। 

इसे अच्छे से लगाने के लिए समुचित दूरी पर मेड़ बनानी चाहिए। इसको तने की कटिंग और जड़ों द्वारा भी लगाया जा सकता है। हालांकि, वर्तमान में ऑनलाइन भी इसके बीज मिलने लगे हैं। खेत में 20-25 दिन तक हल्की सिंचाई करते रहना चाहिए।

नेपियर घास को खिलाने से बढ़ती है पशुओं की दूध देने की क्षमता

नेपियर घास को खिलाने से बढ़ती है पशुओं की दूध देने की क्षमता

पशुओं की दूध की क्षमता बढ़ाने के लिए किसान एवं पशुपालक काफी प्रयासरत रहते हैं। इसी विषय से संबंधित हम आज आपको बताने जा रहे हैं, नेपियर घास के बारे में। इस घास को पशुओं को खिलाते ही पशुओं में दूध देने की क्षमता 10 से 15 फीसद तक बढ़ जाती है। इस परिस्थिति में पशुपालक अत्यधिक दूध विक्रय कर अच्छी आय अर्जित कर सकते हैं। जैसा कि हम जानते हैं, कि भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां पर 75 फीसद जनसँख्या आज तक भी गांव में ही रहती है, जो कि खेती एवं पशुपालन से संबंधित हुई है। इसका जीवन यापन भी कृषि एवं पशुपालन के माध्यम से ही चलता है। साथ ही, बहुत सारे किसान गांव में ऐसे भी मौजूद होते हैं, जो पूर्णतय भूमिहीन होते हैं। ऐसी स्थिति में वह पशुपालन करके स्वयं के घर का खर्च चलाते हैं। इसके लिए वह दूध सहित मक्खन एवं घी विक्रय करते हैं, जिससे उनको मोटी आय होती है। विशेष बात यह है, कि पशुपालन से संबंधित बेहतरीन आय तभी की जा सकती है, जब उनके पशु ज्यादा दूध दें। इसके लिए पशुओं से अधिक दूध निकालने हेतु उन्हें बेहतरीन एवं पौष्टिक आहार भी देना आवश्यक होगा। ऐसी स्थिति में हरी- हरी घासें पशुओं की सेहत और दूध वृद्धि में कारगार भूमिका निभाएंगी। आपको बतादें कि, हरी- हरी घास का सेवन करने से पशुओं की दूध देने की क्षमता में बढ़ोत्तरी हो जाती है। इस वजह से बरसीम, जिरका, गिनी एवं पैरा जैसी घास पशुओं को खिलाना उत्तम रहता है। हालाँकि, इन समस्त घासों में नेपियर घास सर्वाधिक अच्छी मानी जाती है।

निरंतर पांच वर्ष तक घास की कटाई कर सकते हैं

जानकारों के अनुसार, नेपियर घास की खेती हर प्रकार की मृदा में की जा सकती है। इस वजह से अत्यधिक परिश्रम करने की भी आवश्यकता नहीं होती है। विशेष बात यह है, कि इसकी सिंचाई भी काफी कम करनी पड़ती है। इस वजह से इसकी लागत में काफी कमी आती है। नेपियर की सबसे बड़ी विशेषता यह है, कि इसकी एक बार रोपाई के उपरांत आप पांच वर्ष तक हरा चारा काट सकते हैं। इसकी प्रथम कटाई खेती शुरू करने के 65 दिन उपरांत की जाती है। इसके उपरांत आप 35- 40 दिनों के समयांतराल पर निरंतर पांच वर्ष तक कटाई की जा सकती है। यह भी पढ़ें: जाने कैसे लेमन ग्रास की खेती करते हुए किसानों की बंजर जमीन और आमदनी दोनों में आ गई है हरियाली

किसान दूध विक्रय से बेहतर आय अर्जित कर सकते हैं

आपको बतादें कि नेपियर घास को हम बंजर भूमि पर भी उगा सकते हैं। साथ ही, किसान खेत की मेढ़ पर भी इसको रोप सकते हैं। जानकारी के लिए बतादें कि नेपियर की रोपाई फरवरी से जुलाई माह के मध्य की जाती है। इसके खेत में जल निकासी हेतु बेहतरीन सुविधा होनी आवश्यक है । मीडिया खबरों के अनुसार, इस घास में 10 फीसद तक प्रोटीन रहता है। साथ ही, रेशा 30 प्रतिशत, जबकि कैल्सियम 0.5 फीसद होता है। इसको दलहन के चारे सहित मिश्रण कर पशुओं को खिलाना चाहिए। इसके सेवन से पशुओं में दूध देने की क्षमता 10 से 15 फीसद तक वृद्धि हो जाती है। ऐसी स्थिति में पशुपालक अधिक दूध विक्रय कर बेहतरीन आय अर्जित कर सकते हैं।
इस घास के सेवन से बढ़ सकती है मवेशियों की दुग्ध उत्पादन क्षमता; 10 से 15% तक इजाफा संभव

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खेती और पशुपालन का साथ चोली दामन का रहा है. बहुत से किसान ऐसे हैं जो फसल उगाने के साथ-साथ पशुपालन से भी जुड़े हुए हैं. इसके अलावा हमारे देश में कुछ किसान ऐसे भी हैं जिनके पास खेती करने के लिए बहुत ज्यादा जमीन नहीं होती है तो ऐसे में वह अपनी जीविका कमाने के लिए लगभग पूरी तरह से पशुपालन पर ही निर्भर रहते हैं. पशु पालन करने के लिए उन्नत पशुधन जितना ज्यादा जरूरी है उतना ही ज्यादा महत्वपूर्ण है कि किसानों के पास हरा चारा उपलब्ध रहे. खासकर अगर किसान दुग्ध उत्पादन से अपनी जीविका चलाना चाहते हैं तो उनके पास साल भर  हरे चारे का इंतजाम होना बेहद जरूरी हो जाता है. ऐसे तो हरे चारे के लिए बरसीम,जिरका, गिन्नी, पैरा जैसे कई तो है के चारे इस्तेमाल किए जाते हैं लेकिन अगर आप चाहते हैं कि आपका पशु ज्यादा से ज्यादा दूध दे तो इसके लिए नेपियर घास को सबसे ज्यादा अच्छा माना गया है. थोड़े ही समय में यह घास बहुत ज्यादा ऊंची हो जाती है और यही कारण है कि इसे’  हाथी घास के नाम से भी जाना जाता है. सबसे पहली अफ्रीका में उगाई जाने वाली यह नेपियर घास भारत में 1912 में पहली बार तमिलनाडु में उगाई गई थी और उसके बाद इस पर कई तरह के शोध करते हुए इसे और ज्यादा  बढ़िया क्वालिटी का कर दिया गया है.

एक बार लगा कर कर सकते हैं 5 साल तक कटाई

नेपियर घास की सबसे अच्छी बात यह है कि इसे हर तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है और साथ ही इसके लिए बहुत ज्यादा सिंचाई की जरूरत ही नहीं लगती है. एक बार इसे उगाने के बाद 60 से 65 दिन के भीतर इसकी पहली कटाई की जा सकती है और उसके बाद हर 30 से 35 दिन के बीच में आप इस की कटाई जारी रख सकते हैं. यह घास ना केवल आपके पशुओं के लिए अच्छी है बल्कि ये भूमि संरक्षण का भी काम करती है.इसमें प्रोटीन 8-10 फ़ीसदी, रेशा 30 फ़ीसदी और कैल्सियम 0.5 फ़ीसदी होता है. इसे दलहनी चारे के साथ मिलाकर पशुओं को खिलाना चाहिए. यह भी पढ़ें: हरा चारा गौ के लिए ( Green Fodder for Cow) अगर आपके पास चार से पांच पशुओं है तो आप केवल आधा बीघा जमीन में है घास लगाकर उनका अच्छी तरह से पालन पोषण कर सकते हैं.

कैसे करें नेपियर घास की खेती?

अगर आप इस गांव का उत्पादन गर्मियों की धूप और हल्की बारिश के समय में करते हैं तो आपको बहुत अच्छी खासी फसल का उत्पादन में सकता है. गर्मियों के मुकाबले सर्दियों में यह घास जरा धीमी गति से बढ़ती है इसीलिए किसान जून-जुलाई के महीनों में इसकी सबसे ज्यादा बुवाई करते हैं और फरवरी के आसपास की कटाई चालू हो जाती हैं. नेपियर घास की खेती करते समय हमें गहरी जुताई करते हुए खेत में मौजूदा सभी तरह के खरपतवार को खत्म कर देना चाहिए.  इस फसल से हमें बीज नहीं मिलता है क्योंकि इसे तने की कटिंग करते हुए बोया जाता.

खाने से बढ़ जाती है पशुओं की दुग्ध क्षमता

नेपियर घास एक ऐसी खास है जिसे अगर दलहन के चारे में मिलाकर मवेशियों को खिलाया जाए तो कुछ ही दिनों में उनके दूध देने की क्षमता 10 से 15% तक बढ़ सकती है. ऐसे में पशुपालक आजकल बढ़-चढ़कर इस फसल का उत्पादन कर रहे हैं ताकि वह ज्यादा से ज्यादा दूध उत्पादन के जरिए मुनाफा कमा सकें.
हाथी घास की खेती के लिए राजस्थान सरकार अच्छी-खासी सब्सिड़ी प्रदान कर रही है

हाथी घास की खेती के लिए राजस्थान सरकार अच्छी-खासी सब्सिड़ी प्रदान कर रही है

हाथी घास की खेती पशुओं के चारे के रूप में की जाती है। राजस्थान सरकार इसकी पैदावार के लिए किसानों को सब्सिड़ी मुहैय्या करा रही है। दूध देने वाले पशुओं की सेहत के लिए उन्हें हाथी घास खिलाई जाती है। इससे उनके शरीर में जल की कमी नहीं होती है। साथ ही, वह दूध का उत्पादन भी बेहतर करते हैं। हालांकि, गर्मियों में घास का उत्पादन भी एक कठिन एवं महंगा कार्य होता है। हाथी घास की खेती के लिए पौधों को प्रति चार से पांच दिन में पानी देना होता है। ऐसी स्थिति में हरे घास की खेती कृषकों के लिए बेहद महंगा सौदा हो जाती है। परंतु, वर्तमान में किसानों को घास की खेती के लिए चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि सरकार किसानों को नेपियर घास की खेती के लिए अनुदान मुहैय्या करा रही है।

हाथी घास का क्या महत्व होता है

हाथी घास को नेपियर खास भी कहा जाता है। यह दिखने में बिल्कुल ही गन्ने की भांति होती है। आप पूरे साल हाथी घास का उत्पादन कर सकते हैं। इस घास में विभिन्न प्रकार के पोषक तत्व होते हैं। हाथी घास पशुओं के लिए गुणकारी होती है। अगर आप गर्मियों में गाय अथवा बकरियों को हाथी घास खिलाते हैं, तो इससे उनका पाचन तंत्र अच्छा रहता है और शरीर भी ठंडा रहता है। हाथी घास की विशेषता यह है, कि इसे आप किसी भी मौसम में सहजता से उगा सकते हैं।

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सरकार हाथी खास की खेती के लिए सब्सिड़ी प्रदान कर रही है

राजस्थान सरकार ने एक बड़ा ऐलान किया है। यदि किसान वर्तमान में हाथी घास की खेती कर रहे हैं, तो राजस्थान सरकार उन्हें प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 10,000 रुपये तक का अनुदान देती है। इस योजना का फायदा केवल राजस्थान राज्य के किसान उठा सकते हैं। इसके लिए आप अपने आसपास के किसी कॉमस सर्विस सेंटर में जाकर आवेदन कर सकते हैं।

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कृषि अधिकारी भौतिक रूप से जाँच-पड़ताल करेंगे

जानकारी के अनुसार, खेतों के भौतिक निरीक्षण के पश्चात ही किसानों को अनुदान दिया जाएगा। प्रत्येक जनपद के कृषि पदाधिकारी खेतों में जाकर भौतिक निरीक्षण करेंगे। इसके पश्चात सब्सिडी के लिए आवेदन स्वीकार किया जाएगा। वहीं, अनुदानित धनराशि सीधे तौर पर किसान के खाते में हस्तांतरित कर दी जाएगी। इसके लिए किसानों को राज किसान साथी पोर्टल पर जाकर आवेदन करना पड़ेगा।